Monday, November 16, 2020

Chitragupta Puja 2020: Significance, Time and Puja Vidhi*श्री चित्रगुप्त जी की पूजन विधि

 Chitragupta Puja 2020: Significance, Time and Puja Vidhi*श्री चित्रगुप्त जी की पूजन विधि

 https://www.drikpanchang.com/festivals/chitra-pournami/chitra-pournami-date-time.html?year=2020

Chitra Pournami is a Tamil festival which is observed in the month of Chithirai during full moon day. This day commemorates Chitragupta who is the assistance of Lord Yama.
 

Chitragupta (Sanskrit: चित्रगुप्त, 'rich in secrets' or 'hidden picture') is a Hindu god assigned with the task of keeping complete records of actions of human beings on the earth and punish or reward them according to their Karmas. Upon their death, Chitragupta has the task of deciding heaven or the hell for the humans, depending on their actions on the earth. Chitragupta is the seventeenth Manasputra of Lord Brahma. Chitragupta is believed to be created from Bramha's soul and mind (chitt) and thus, allotted the right to write Vedas like Brahmins with the duty of a Kshatriya, He accompanies Yamraj, the god of death.



एक ऐसा मंदिर जिसमें जाने से लोगों को लगता है डर

इस मंदिर के संबंध में लोग मानते है कि जब किसी की मृत्यु होती है तो यमराज के दूत उस जिव आत्मा को पकड़कर सर्वप्रथम यहां लाते है। यहां मृत्यु के देवता यम रहते है। साथ ही इसके भीतर एक गुप्त कमरा है जहां चित्रगुप्त रहते है। चित्रगुप्त यमराज के सचिव है जो जीवआत्मा का लेखा-जोखा रखते है।

 

 


आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे जिसे जानकर आप दंग रह जाएंगे। दरअसल, हम जिस मंदिर की बात कर रहे है वो भारत में ही मौजूद है जहां व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात केवल उसकी आत्मा ही मंदिर में जाती है। बता दें कि ये मंदिर हिमाचल के चम्बा नामक जिले में भरमार नामक जगह पर मौजूद है। इसमें प्रत्येक शख्स की आत्मा मौत के पश्चात यंहा आती है। यहां अनेक राज छुपे हुए है ये मंदिर अन्य मंदिरों जैसे नही बल्कि घर जैसे ही नजर आता है।

यमराज का यह मंदिर हिमाचल के चम्बा जिले में भरमौर नाम स्थान पर स्थित है जो एक भवन के समान है। कहते हैं कि विधाता लिखता है, चित्रगुप्त बांचता है, यमदूत पकड़कर लाते हैं और यमराज दंड देते हैं। मान्यता हैं कि यहीं पर व्यक्ति के कर्मों का फैसला होता है। यमराज का नाम धर्मराज इसलिए पड़ा क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था। यह मंदिर देखने में एक घर की तरह दिखाई देता है जहां एक खाली कक्ष है जिमें भगवान यमराज अपने मुंशी चित्रगुप्त के साथ विराजमान हैं। इस कक्ष को चित्रगुप्त का कक्ष कहा जाता है। चित्रगुप्त यमराज के सचिव हैं जो जीवात्मा के कर्मो का लेखा-जोखा रखते हैं।

 


मान्यता अनुसार जब किसी प्राणी की मृत्यु होती है तब यमराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को पकड़कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं। चित्रगुप्त जीवात्मा को उनके कर्मो का पूरा ब्योरा सुनाते हैं। इसके बाद चित्रगुप्त के सामने के कक्ष में आत्मा को ले जाया जाता है। इस कमरे को यमराज की कचहरी कहा जाता है। यहां पर यमराज कर्मों के अनुसार आत्मा को अपना फैसला सुनाते हैं। माना जाता है कि इस मंदिर में चार अदृश्य द्वार हैं जो स्वर्ण, रजत, तांबा और लोहे के बने हैं। यमराज का फैसला आने के बाद यमदूत आत्मा को कर्मों के अनुसार इन्हीं द्वारों से स्वर्ग या नर्क में ले जाते हैं। गरुड़ पुराण में भी यमराज के दरबार में चार दिशाओं में चार द्वार का उल्लेख किया गया है।

 


इस मंदिर के संबंध में लोग मानते है कि जब किसी की मृत्यु होती है तो यमराज के दूत उस जिव आत्मा को पकड़कर सर्वप्रथम यहां लाते है। यहां मृत्यु के देवता यम रहते है। साथ ही इसके भीतर एक गुप्त कमरा है जहां चित्रगुप्त रहते है। चित्रगुप्त यमराज के सचिव है जो जीवआत्मा का लेखा-जोखा रखते है। जानकारी के मुताबिक इस मंदिर में चार अदृश्य दरवाजे है जो सोना, चांदी, तांबा और लोहे के बने हैं। चित्रगुप्त के समक्ष उसे पेश किया जाता है। तत्पश्चात चित्रगुप्त जिव आत्मा को उनके कर्मो का पूरा विवरण देते है उसके बाद समक्ष कमरे में जिव आत्मा को ले जाते है। यमराज के निर्णय के मुताबिक, यम के दूत आत्मा को उनके कार्यों के मुताबिक इन दरवाजों से जन्नत या फिर नरक में ले जाते है।


 

श्री चित्रगुप्त पूजन विधि (सरलतम विधि )


पूजा स्थान को साफ़ कर एक चौकी पर कपड़ा विछा कर श्री चित्रगुप्त जी का फोटो स्थापित करें यदि चित्र उपलब्ध न हो तो कलश को प्रतीक मान कर चित्रगुप्त जी को स्थापित करें

दीपक जला कर गणपति जी को चन्दन ,हल्दी,रोली अक्षत ,दूब ,पुष्प व धूप अर्पित कर पूजा अर्चना करें |

श्री चित्रगुप्त जी को भी चन्दन ,हल्दी,रोली अक्षत ,पुष्प व धूप अर्पित कर पूजा अर्चना करें |

फल ,मिठाई और विशेष रूप से इस दिन के लिए बनाया गया पंचामृत (दूध ,घी कुचला अदरक ,गुड़ और गंगाजल )और पान सुपारी का भोग लगायें |

इसके बाद परिवार के सभी सदस्य अपनी किताब,कलम,दवात आदि की पूजा करें और चित्रगुप्त जी के समक्ष रक्खें |

अब परिवार के सभी सदस्य एक सफ़ेद कागज पर एप्पन (चावल का आंटा,हल्दी,घी, पानी )व रोली से स्वस्तिक बनायें |उसके नीचे पांच देवी देवतावों के नाम लिखें ,जैसे -श्री गणेश जी सहाय नमः ,श्री चित्रगुप्त जी सहाय नमः ,श्री सर्वदेवता सहाय नमः आदि |

 


इसके नीचे एक तरफ अपना नाम पता व दिनांक लिखें और दूसरी तरफ अपनी आय व्यय का विवरण दें ,इसके साथ ही अगले साल के लिए आवश्यक धन हेतु निवेदन करें |फिर अपने हस्ताक्षर करें |

 

इस कागज और अपनी कलम को हल्दी रोली अक्षत और मिठाई अर्पित कर पूजन करें |

 

अब श्री चित्रगुप्त जी का ध्यान करते हुए निम्न लिखित मंत्र का कम से कम ११ बार उच्चारण करें -

 

मसीभाजन संयुक्तश्चरसि त्वम् ! महीतले |

 

लेखनी कटिनीहस्त चित्रगुप्त नमोस्तुते ||

 

चित्रगुप्त ! मस्तुभ्यं लेखकाक्षरदायकं |

 

कायस्थजातिमासाद्य चित्रगुप्त ! नामोअस्तुते ||

 

अब सभी सदस्य श्री चित्रगुप्त जी की आरती गावें |

 

इसके पश्चात् ख़ुशी पूर्वक श्री चित्रगुप्त जी महराज और श्री गणेश जी महाराज से अपने और अपने लोगों के लिए मंगल आशीर्वाद प्राप्त करते हुए शीश झुकाएं एवं प्रसाद का वितरण करें |

 

श्री चित्रगुप्त जी की आरती -

 

जय चित्रगुप्त यमेश तव ,शरणागतम ,शरणागतम|

 

जय पूज्य पद पद्मेश तव शरणागतम ,शरणागतम||

 

जय देव देव दयानिधे ,जय दीनबंधु कृपानिधे |

 

कर्मेश तव धर्मेश तव शरणागतम ,शरणागतम||

 

जय चित्र अवतारी प्रभो ,जय लेखनीधारी विभो |

 

जय श्याम तन चित्रेश तव शरणागतम ,शरणागतम||

 

पुरुषादि भगवत् अंश जय ,कायस्थ कुल अवतंश जय |

 

जय शक्ति बुद्धि विशेष तव शरणागतम ,शरणागतम||

 

जय विज्ञ मंत्री धर्म के ,ज्ञाता शुभाशुभ कर्म के |

 

जय शांतिमय न्यायेश तव शरणागतम ,शरणागतम||

 

तव नाथ नाम प्रताप से ,छूट जाएँ भय त्रय ताप से |

 

हों दूर सर्व क्लेश तव शरणागतम ,शरणागतम||

 

हों दीन अनुरागी हरि, चाहें दया दृष्टि तेरी |

 

कीजै कृपा करुणेश तव शरणागतम ,शरणागतम||

 

॥ Shri Chitragupta Ji Ki Aarti ॥

 

Om Jai Chitragupta Hare,Swami Jai Chitragupta Hare।

Bhakta Jano Ke Ichchhita,Phala Ko Purna Kare॥

Om Jai Chitragupta Hare...॥

Vighna Vinashaka Mangalakarta,Santana Sukhadayi।

Bhaktana Ke Pratipalaka,Tribhuvana Yasha Chhayi॥

Om Jai Chitragupta Hare...॥

Rupa Chaturbhuja,Shyamala Murati, Pitambara Rajai।

Matu Iravati,Dakshina, Vama Anga Sajai॥

Om Jai Chitragupta Hare...॥

Kashta Nivarana, Dushta Samharana,Prabhu Antaryami।

Srishti Samharana, Jana Dukha Harana,Prakata Huye Swami॥

Om Jai Chitragupta Hare...॥

Kalama Dawata, Shankha, Patrika,Kara Mein Ati Sohai।

Vaijayanti Vanamala,Tribhuvana Mana Mohai॥

Om Jai Chitragupta Hare...॥

Simhasana Ka Karya Sambhala,Brahma Harshaye।

Taintisa Koti Devata,Charanana Mein Dhaye॥

Om Jai Chitragupta Hare...॥

Nripati Saudasa, Bhishma Pitamaha,Yada Tumhe Kinha।

Vegi Vilamba Na Layo,Ichchhita Phala Dinha॥

Om Jai Chitragupta Hare...॥

Dara, Suta, Bhagini,Saba Apne Swastha Ke Karta।

Jaun Kahan Sharana Mein Kisaki,Tuma Taja Main Bharta॥

Om Jai Chitragupta Hare...॥

Bandhu, Pita Tuma Swami,Sharana Gahun Kisaki।

Tuma Bina Aura Na Duja,Asa Karun Jisaki॥

Om Jai Chitragupta Hare...॥

Jo Jana Chitragupta Ji Ki Aarti,Prema Sahita Gavain।

Chaurasi Se Nishchita Chhutain,Ichchhita Phala Pavain॥

Om Jai Chitragupta Hare...॥

Nyayadhisha Baikuntha Nivasi,Paap Punya Likhate।

Hama Hain Sharana Tihari,Asa Na Duji Karate॥

Om Jai Chitragupta Hare...॥

 


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वृहद् पूजन विधि -

इस विशेष पर्व पर श्री चित्रगुप्त जी महाराज एवं धर्मराज के पूजन से पहले पूजा स्थल पर कलश स्थापना (वरुण पूजन कर) वरुण देवता का आवाहन करें | फिर गणेश अम्बिका का पूजन कर उनका आवाहन करें | तत्पश्चात ईशान कोण में वेदी बनाकर नवग्रह की स्थापना कर आवाहन करें | इसके पश्चात् दवात,कलम,पत्र-पूजन एवं तलवार की स्थापना कर नीचे दी गयी विधि से पूजन करें |

पूजन एवं हवन सामग्री -

धूप, दीप, चन्दन, लाल फूल, हल्दी, रोली, अक्षत, दही, दूब, गंगाजल, घी, कपूर, कलम ( बिना चिरी हुई ), दवात, कागज, पान, सुपारी, गुड़, पांच फल, पांच मिठाई, पांच मेवा, लाई, चूड़ा, धान का लावा, हवन सामग्री एवं हवन के लिए लकड़ी आदि |

 

सामग्री पर पवित्र जल छिड़कते हुए प्रभु का स्मरण करें |

 

नमस्तेस्तु चित्रगुप्ते, यमपुरी सुरपूजिते |

 

लेखनी-मसिपात्र, हस्ते, चित्रगुप्त नमोस्तुते ||

 

स्वस्तिवाचन -

 

ॐ गणना त्वां गणपति हवामहे, प्रियाणां त्वां प्रियेपत्र हवामहे निधीनां त्वां निधिपते हवामहे वसो मम आहमजानि गर्भधामा त्वमजासि गर्भधम |

 

ॐ गणपत्यादि पंचदेवा नवग्रहाः इन्द्रादि दिग्पाला दुर्गादि महादेव्यः इहा गच्छत स्वकीयाम् पूजां ग्रहीत भगवतः चित्रगुप्त देवस्य पूजमं विघ्नरहित कुरूत |

 

ध्यान -

 

तच्छरी रान्महाबाहुः श्याम कमल लोचनः कम्वु ग्रीवोगूढ शिरः पूर्ण चन्द्र निभाननः ||

काल दण्डोस्तवोवसो हस्ते लेखनी पत्र संयुतः | निःमत्य दर्शनेतस्थौ ब्रह्मणोत्वयक्त जन्मनः ||

लेखनी खडगहस्ते च- मसि भाजन पुस्तकः | कायस्थ कुल उत्पन्न चित्रगुप्त नमो नमः ||

मसी भाजन संयुक्तश्चरोसि त्वं महीतले | लेखनी कठिन हस्ते चित्रगुप्त नमोस्तुते ||

चित्रगुप्त नमस्तुभ्यं लेखकाक्षर दायक | कायस्थ जाति मासाद्य चित्रगुप्त मनोस्तुते ||

योषात्वया लेखनस्य जीविकायेन निर्मित | तेषा च पालको यस्भात्रतः शान्ति प्रयच्छ मे ||

आवाहन-

हे ! चित्रगुप्त जी मैं आपका आवाहन करता हूँ |

ॐ आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरौ भव | यावत्पूजं करिष्यामि तावत्वं सान्निधौ भव |

ॐ भगवन्तं श्री चित्रगुप्त आवाहयामि स्थापयामि ||

आसन-

ॐ इदमासनं समर्पयामि |

भगवते चित्रगुप्त देवाय नमः ||

पाद्य-

ॐ पादयोः पाद्यं समर्पयामि |

भगवते चित्रगुप्त देवाय नमः ||

आचमन-

ॐ मुखे आचमनीयं समर्पयामि |

भगवते चित्रगुप्ताय नमः ||

स्नान-

ॐ स्नानार्तः जलं समर्पयामि |

भगवते श्री चित्रगुप्ताय नमः ||

वस्त्र-

ॐ पवित्रों वस्त्रं समर्पयामि |

भगवते श्री चित्रगुप्त देवाय नमः ||

पुष्प-

ॐ पुष्पमालां च समर्पयामि |

भगवते श्री चित्रगुप्तदेवाय नमः ||

धूप-

ॐ धूपं माधापयामी |

भगवते श्री चित्रगुप्तदेवाय नमः ||

दीप-

ॐ दीपं दर्शयामि |

भगवते श्री चित्रगुप्त देवाय नमः II

नैवेद्य

ॐ नैवेद्यं समर्पयामि |

भगवते श्री चित्रगुप्त देवाय नमः ||

ताम्बूल-दक्षिणा

ॐ ताम्बूलं समर्पयामि

ॐ दक्षिणा समर्पयामि

भगवते श्री चित्रगुप्त देवाय नमः ||

दवात -लेखनी मंत्र

लेखनी निर्मितां पूर्व ब्रह्यणा परमेष्ठिना |

लोकानां च हितार्थाय तस्माताम पूजयाम्ह्यम||

पुस्तके चर्चिता देवी , सर्व विद्यान्न्दा भवः |

मदगृहे धन-धान्यादि-समृद्धि कुरु सदा ||

लेखयै ते नमस्तेस्तु , लाभकत्रर्ये नमो नमः |

सर्व विद्या प्रकाशिन्ये , शुभदायै नमो नमः ||

 

अब परिवार के सभी सदस्य एक सफ़ेद कागज पर एप्पन (चावल का आंटा,हल्दी,घी, पानी )व रोली से स्वस्तिक बनायें |उसके नीचे पांच देवी देवतावों के नाम लिखें ,जैसे -श्री गणेश जी सहाय नमः ,श्री चित्रगुप्त जी सहाय नमः ,श्री सर्वदेवता सहाय नमः आदि |

 

इसके नीचे एक तरफ अपना नाम पता व दिनांक लिखें और दूसरी तरफ अपनी आय व्यय का विवरण दें ,इसके साथ ही अगले साल के लिए आवश्यक धन हेतु निवेदन करें |फिर अपने हस्ताक्षर करें |

 

इस कागज और अपनी कलम को हल्दी रोली अक्षत और मिठाई अर्पित कर पूजन करें |

 

अब श्री चित्रगुप्त जी का ध्यान करते हुए निम्न लिखित मंत्र का कम से कम ११ बार उच्चारण करें -

 

मसीभाजन संयुक्तश्चरसि त्वम् ! महीतले |

 

लेखनी कटिनीहस्त चित्रगुप्त नमोस्तुते ||

 

चित्रगुप्त ! मस्तुभ्यं लेखकाक्षरदायकं |

 

कायस्थजातिमासाद्य चित्रगुप्त ! नामोअस्तुते ||

 

Mantra ॐ श्री चित्रगुप्ताय नमः

(Oṃ shri chitraguptaay Namaḥ)
 
 
 
 



भीष्म पितामह ने पुलस्त्य मुनि से पूछा के हे महामुनि संसार में कायस्थ नाम से विख्यात मनुष्य किस वंश में उत्पन्न हुये हैं तथा किस वर्ण में कहे जाते हैं इसे में जानना चाहता हूँ | इस प्रकार के वचन कहकर भीष्म पितामह ने पुलस्त्य मुनि से इस पवित्र कथा को सुनने के इक्छा जाहिर की पुलस्त्य मुनि ने प्रसन्न होकर गंगा पुत्र भीष्म पितामह से कहा - हे गंगेय में कायस्थ उत्पत्ति की पवित्र कथा का वर्णन आपसे करता हूँ | जो इस जगत का पालन कर्ता है वही फिर नाश करेगा उस अब्यक्त शांत पुरुष लोक - पितामह ब्रम्हा ने जिस तरह पूर्व में इस संसार की कल्पना की है | वही वर्णन में कर रहा हूँ -

 

मुख से ब्राम्हण बाहु से क्षत्रिय, जंघा से वैश्य, पैर से शूद्र, दो पाँव चार पाँव वाले पशु से लेकर समस्त सर्पादि जीवो का एक ही समय में चन्द्रमा, सूर्यादि ग्रहों को और बहुत से जीवो को उत्पन्न कर ब्रम्हा में सूर्य के समान तेजस्वी ज्येष्ठ पुत्र को बुलाकर कहा हे सुब्रत तुम यत्न पूर्वक इस जगत की रक्षा करो | सृष्टि का पालन करने के लिये ज्येष्ठ पुत्र को आज्ञा देकर ब्रम्हा ने एकाग्रचित होकर दस हजार सौ वर्ष की समाधि लगाई अंत में विश्रांत चित्त हुये तदउपरांत उस ब्रम्हा के शरीर से बड़ी भुजाओ वाले श्याम वर्ण, कमलवत शंक तुल्य गर्दन, चक्रवत तेजस्वी, अति बुद्धिमान हाथ में कलम-दवात लिये तेजस्वी, अतिसुन्दर विचित्रांग, स्थिर नेत्र वाले, एक पुरुष अव्यक्त जन्मा जो ब्रम्हा के शरीर से उत्पन्न हुआ है | भीष्म उस अव्यक्त पुरुष को नीचे ऊपर देखकर ब्रम्हा जी ने समाधि छोडकर पूछा हे पुरुषोत्तम हमारे सामने स्थित आप कौन हैं | ब्रम्हा का यह वचन सुनकर वह पुरुष बोला हे विधे में आप ही के शरीर से उत्पन्न हुआ हूँ इसमें किंचित मात्र भी संदेह नहीं है | हे तात अब आप मेरा नाम करण करने योग्य हैं | सो करिये और मेरे योग्य कार्य भी कहिये | यह वाक्य सुनकर ब्रम्हा जी निज शरीर रज पुरुष से हंसकर प्रसन्न मुद्रा से बोले की मेरे शरीर से तुम उत्पन्न हुये हो इससे तुम्हारी कायस्थ संज्ञा है | और पृथ्वी पर चित्रगुप्त तुम्हारा नाम विख्यात होगा | हे वत्स धर्मराज की यमपुरी धर्माधर्म वितार के लिये तुम्हारा निश्चित निवास होगा | हे पुत्र अपने वर्ण में जो उचित धर्म है उसका विधि पूर्वक पालन करो और संतान उत्पन्न करो इस प्रकार ब्रम्हा जी भार युक्त वर को देकर अंतर्ध्यान हो गये श्री पुलस्त्य मुनि ने कहा है हे कुरूवंश के वृद्धि करने वाले भीष्म चित्रगुप्त से जो प्रजा उत्पन्न हुई है | उसका भी वर्णन करता हूँ सुनिये - चित्रगुप्त का प्रथम विवाह सूर्यनारायण के बड़े पुत्र श्राद्धादेव मुनि की कन्या नंदनी एरावती से हुआ इसके चार पुत्र उत्पन्न हुये प्रथम भानु जिनका नाम धर्मध्वज है जिसने श्रीवास्तव कायस्थ वंश बेल को जन्म दिया | द्वितीय पुत्र मतिमान जिनका नाम समदयालु है | जिसने सक्सेना वंश बेल को जन्म दिया | तृतीय पुत्र चारु जिनका नाम युगन्धर है | जिसने माथुर कायस्थ वंश बेल को जन्म दिया | चतुर्थ पुत्र सुचारू जिनका नाम धर्मयुज है जिसने गौंड कायस्थ वंश को जन्म दिया |

 

 चित्रगुप्त का दूसरा विवाह सुशर्मा ऋषि की कन्या शोभावती से हुआ इनसे आठ पुत्र हुये प्रथम पुत्र करुण जिनका नाम सुमति है जिसने कर्ण कायस्थ को जन्म दिया | द्वितीय पुत्र चित्रचारू जिनका नाम दामोदर है | जिसने निगम कायस्थ को जन्म दिया | तृतीय पुत्र जिनका नाम भानुप्रकाश है | जिसने भटनागर कायस्थ को जन्म दिया जिनका नाम युगन्धर है | अम्बष्ठ कायस्थ को जन्म दिया | पंचम पुत्र वीर्यवान जिनका नाम दीन दयालु है | जिसने आस्थाना कायस्थ को जन्म दिया शास्त्हम पुत्र जीतेंद्रीय जिनका नाम सदा नन्द है | जिसने कुलश्रेष्ट कायस्थ को जन्म दिया | अष्टम पुत्र विश्व्मानु जिनका नाम राघवराम है जिसने बाल्मीक कायस्थ को जन्म दिया है | हे महामुने चित्रगुप्त से उत्पन्न सभी पुत्र सभी शास्त्रों में निपुण उत्पन्न हुये धर्मा धर्म को जानने वाले महामुनि चित्रगुप्त ने सभी पुत्रो को पृथ्वी में भेजा और धर्म साधना के शिक्षा दी और कहा की तुम्हे देवताओं का पूजन पितरो का श्राद्ध तथा तर्पण, ब्राम्हणों का पालन पोषण और सदेव अभ्यागतो की यत्न पूर्वक श्रद्धा करनी चाहिये | हे पुत्र तीनो लोको के हित के लिये यत्न कर धर्म की कामना करके महर्षिमर्दिनी देवी का पूजन अवश्य करें | जो प्रकृति रूप माया चण्ड मुण्ड का नाश करने वाली तथा समस्त सिद्धियों को देने वाली है उसका पूजन करें जिसके प्रभाव से देवता लोग भी सिद्धियों को पाकर स्वर्ग लोक को गए और स्वर्ग के अधिकार को पाकर सदेव यज्ञ में भाग लेने वाले हुये | ऐसी देवी के लिये तुम सब उत्तम मिष्ठानादि समर्पण करो जिससे वह चण्डिका देवताओं की भाँती तुमको भी सिद्ध देने वाली होवे और वैष्णव धर्म का अवलंबन कर मेरे वाक्य का प्रति पालन करो सभी पुत्रो को आज्ञा देकर चित्रगुप्त स्वर्ग लोक चले गये स्वर्ग जाकर चित्रगुप्त धर्मराज के अधिकार में स्थित हुये | हे भीष्म इस प्रकार चित्रगुप्त की उत्पत्ति मैंने आपसे कही |

 


भविष्योत्तर पुराण के अनुसार यमराज ने यमुना को वरदान दिया है कि जो भी व्यक्ति यमद्वितीया के दिन यमुना के जल में स्नान करता है और बहन के घर जाकर उनके हाथों से बना भोजन करता है उसकी आयु लंबी होती है।

 

आज यमद्वितीय है। इसे भाई दूज के नाम से भी जाना जाता है। यमद्वितीया के दिन अगर यमुना में स्नान नहीं करते हैं तो बहन के घर जाकर बहन के हाथों से यमुना जल का टीका लगवाएं और उनके हाथों से बना भोजन करें, इससे भी अकाल मृत्यु से रक्षा होती है।

 

इस संदर्भ में एक कथा है कि यमराज अपने काम में इतने व्यस्त हो गए थे कि अपनी बहन यमुना के पास जाने का समय भी उनके पास नहीं रहा। एक दिन जब बहन यमुना का संदेश अया तब यमराज को अपनी बहन की याद आयी और सभी काम छोड़कर बहन युमना के घर पहुंच गए।

 

यम यमुना के स्नेह मिलन के उपलक्ष्य में यमद्वितीया का त्योहार मनाया जाता है। भगवान यमराज अपनी बहन यमुना के घर पहुंचे तो यमुना ने यमराज के हाथों की पूजा की और अपने हाथ से भोजन बनाकर भाई को खाना खिलाया।

 

भोजन के पश्चात संध्या के समय तक यमराज यमुना के घर में रहे। माना जाता है कि हर वर्ष यमराज यमद्वितीया यानी कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन यमुना के घर आते हैं। इसलिए इस दिन यमुना जल से स्नान एवं टीका लगाना लंबी उम्र के लिए शुभ फलदायी माना गया है।

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 https://en.wikipedia.org/wiki/Chitragupta_temple,_Kanchipuram


Chitragupta temple is a Hindu temple located in Nellukara Street Kanchipuram in the South Indian state of Tamil Nadu. It is one of the rare temples of the Hindu deity Chitragupta, considered to the assistant of Yama, the Hindu god of death. Chitragupta is believed to have emerged from a painting and set as the accountant of good and bad deeds of human beings by Brahma. The temple has a three-tiered Rajagopuram (gateway tower) and a single precinct around the sanctum.

As per Hindu legend, Shiva, the Hindu god of destruction was discussing with his wife Parvathi about maintaining Dharma amidst all human beings in earth and maintaining good account of their deeds. He felt that he wanted to have someone to have a close watch on the people to prevent them from indulging in crime and involving themselves in good deeds. Shiva drew a picture in a gold plate - Parvathi was impressed and wanted Shiva to detail it. The picture turned into a deity by the divine grace of Shiva and Parvathi. Shiva entrusted the duty of maintaining the account of deeds of all human beings in earth. He came to be known as Chitraguptha as he was derived from a Chitra (piture) and Gupta (accountant). He was set as the accountant of Yama, who is the Hindu deity of death.

As per another legend, Brihaspati, the Guru of planetary deities had a disagreement with Indra, the king of celestial deities. On account of the confrontation, Brihaspati discontinued his advocacy to Indra. At a later point, Indra realized his mistakes and patched up with his Guru. To expiate himself from the sins created, he started on a pilgrimage and reached the place to find a Linga. He constructed a temple in the place and golden lotuses started appearing in the nearby temple tank. The day was Chitra Pournami.

A third legend states that Indra prayed to Shiva to have a child, but as per the divine wish, his wife Indrani was not supposed have any progeny. Shiva directed Kamadhenu, the holy cow to give birth to a child. Shiva later entrusted the child to Indra and Indrani, who later brought him up as Chitragupta.
 
 
 

Yama Dwitiya is observed on Dwitiya Tithi during Kartik month. Most of the times, Yama Dwitiya falls two days after Diwali Puja. Yamraj, the lord of death, is worshipped on Yama Dwitiya along with Chitragupta and Yama-Doots, the subordinates of Lord Yamraj.

The Aparahna is the most suitable time for Yama Dwitiya Puja. Yamuna Snan is suggested in the morning before Yamraj Puja during Aparahna. Arghya should be given to Lord Yama after Puja.

 

Yama Dwitiya

16th

November 2020

Monday / सोमवार

 

Dhanteras Yam Puja: धनतेरस के दिन जिस प्रकार कुबेर, भगवान धन्वंतरि और माता लक्ष्मी की पूजा विधि पूर्वक की जाती है, वैसे ही मृत्यु के देवता यमराज की भी पूजा होती है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसे पढ़कर आप इसके महत्व को समझ सकते हैं। धनतेरस पर पढ़ें यह पौराणिक कथा।

 

पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में हेम नाम का एक राजा था, जिसकी कोई संतान नहीं थी। बहुत समय बाद उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई। जब उस बालक की कुंडली बनवाई, तब ज्योतिष ने कहा कि इसकी शादी के 10वें दिन ही मृत्यु का योग है। यह सुनकर राजा हेम ने पुत्र की शादी कभी न करने का निश्चय लिया और उसे एक ऐसे स्थान पर भेज दिया, जहां कोई भी स्त्री न हो।

 

लेकिन नियति को कौन टाल सकता? घने जंगल में राजा के बेटे को एक सुंदर स्त्री मिली और दोनों को आपस में प्रेम हो गया। फिर दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया। ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि भविष्यवाणी के अनुसार, विवाह के 10वें दिन यमदूत राजा के प्राण लेने पृथ्वीलोक आए। जब वे प्राण ले जा रहे थे, तब उसकी पत्नी के रोने की आवाज सुनकर यमदूत का मन दुखी हो गया।

 

यमदूत जब प्राण लेकर यमराज के पास पहुंचें, तो बेहद दुखी थे। यमराज ने कहा कि दुखी होना स्वाभाविक है, लेकिन कर्तव्य के आगे कुछ नहीं होता। ऐसे में यमदूत ने यमराज से पूछा, 'क्या इस अकाल मृत्यु को रोकने का कोई उपाय है?' तब यमराज ने कहा, 'अगर मनुष्य कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन संध्याकाल में अपने घर के द्वार पर दक्षिण दिशा में दीपक जलाएगा, तो उसके जीवन से अकाल मृत्यु का योग टल जाएगा।' तब से धनतेरस के दिन यम पूजा का विधान है।

 

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धनतेरस का महत्व

1. इस दिन नए उपहार, सिक्का, बर्तन व गहनों की खरीदारी करना शुभ माना जाता है। शुभ मुहूर्त में पूजन करने के साथ सात धान्यों की पूजा की जाती है। सात धान्य में गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर शामिल होता है।

 

2. धनतेरस के दिन चांदी खरीदना शुभ माना जाता है।

 

3. भगवान धन्वन्तरी की पूजा से स्वास्थ्य और सेहत मिलता है। इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं।

 


ऋषि श्री मार्कण्डेय और यमराज की कहानी

The Devi Mahatmya section of the Markandeya Purana is one of the most important texts of Shakti tradition.

https://en.wikipedia.org/wiki/Devi_Mahatmya

 

https://en.wikipedia.org/wiki/Markandeya_Purana

 https://en.wikipedia.org/wiki/Nachiketa


Yama teaches Atma vidya to Nachiketa, at Sankara Mutt, Rameshwaram.

Vājashravasa, desiring a gift from the gods, started an offering to donate all his possession which is called as ' SARVA DAKSHINA'. But Nachiketa, his son, noticed that Vajashravasa was donating only the cows that were old, barren, blind, or lame; not such as might buy the worshiper a place in heaven. Nachiketa wanting the best for his father's rite, asked: "I too am yours, to which god will you offer me?". After being pestered thus, Vājashravasa answered in a fit of anger, "I give you unto Dharmaraja Himself!"

 

So Nachiketa went to Dharmaraja's home, but the god was out, and he waited three days without any food or water. When Yama returned, he was sorry to see that a Brahmin guest had been waiting so long without food and water. In Indian culture guests are believed to be equal to god and causing trouble to god is a great sin. To compensate his mistake, Yama told Nachiketa, "You have waited in my house for three days without hospitality, therefore ask three boons from me". Nachiketa first asked for peace for his father and himself, when he returned to his father. Yama agreed. Next, Nachiketa wished to learn the sacred fire sacrifice, which also Yama elaborated. For his third boon, Nachiketa wanted to learn the mystery of what comes after death of the body.

 

Yama was reluctant on this question. He said that this had been a mystery even to the gods. He asked Nachiketa to ask for some other boon, and offered many material gains.

 

But Nachiketa replied that material things will last only ephemerally and would not confer immortality. So, no other boon would do. Yama was secretly pleased with this disciple, and elaborated on the nature of the true Self, which persists beyond death of the body. The key of the realization is that this Self is inseparable from Brahman, the supreme spirit, the vital force in the universe. Yama's explanation is a succinct explication of Hindu metaphysics, and focuses on the following points:

 

The sound Om! is the syllabus of the supreme Brahman

The Atma, whose symbol is Om is the same as the omnipresent Brahman. Smaller than the smallest and larger than the largest, the Soul is formless and all-pervading.

The goal of the wise is to know this Atma.

The Atma is like a rider; the horses are the senses, which he guides through the maze of desires.

After death, it is the Atma that remains; the Atman is immortal.

Mere reading of the scriptures or intellectual learning cannot realize Atma.

One must discriminate the Atma from the body, which is the seat of desire.

Inability to realize Brahman results in one being enmeshed in the cycle of rebirths. Understanding the Self leads to moksha

Thus having learned the wisdom of the Brahman from Yama, Nachiketa returned to his father as a jivan-muktha.

 

Nachiketa has been one of the most influential characters in Hinduism. Indian monk Swami Vivekananda said: "If I get ten or twelve boys with the faith of Nachiketa, I can turn the thoughts and pursuits of this country in a new channel."



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